सुबह के आठ बज रहे थे। मैं
अपने स्नानघर हेतु पानी की टंकी लगवा रहा था। उस दिन न जाने क्यों मेरा मन जलेबी
खाने को लालायित हो रहा था। अधिकाँशत: मै सुबह का नाश्ता नहीं करता। यदि करता हूँ
तो प्रयास रहता है कि दोपहर को न खाया जाए। मेरा जब भी बलरामपुर प्रवास होता है -
मेरे भोजन की व्यवस्था मेरे पड़ोसी श्रीवास्तव जी की पत्नी करती हैं। एक पेइंग
गेस्ट के नाते, चलने से पूर्व मैं उनका देय अदा कर आता हूँ।
नाश्ता शायद कभी कभार ही उनके यहाँ से आता था। भोजन दोनों समय निशिचत समय पर आ
जाता था। चाय मैं स्वयं बना लेता था। टी बेग्स वाली नींबू की चाय मुझे अधिक पसन्द
है। हाँ! तो
मैं पानी की टंकी लगवाने की बात कह रहा था। मिस्त्री टंकी स्थापित करने का काम कर
रहा था। अचानक उसने मुझसे कहा-साहब! एक कप चाय पिलवा दीजिए, मै सुबह बिना कुछ खाए पिए आपका काम निपटाने
चला आया। मुझे लगा कि शायद ये नहीं जानता कि मैं अकेले रह रहा हूँ। वर्ना यह चाय न
माँगता। मैने
उसे कुछ पैसे देते हुए कहा कि बाजार जाकर तुम चाय नाश्ता कर लेना और वापसी मे मेरे
लिए थोड़ी सी जलेबी और थोड़े से चने या एक समोसा ले आना। वह चला गया। मैने अनुमान
लगाया कि वह लगभग बीस-पचीस मिनट बाद आएगा। बीस मिनट बाद मै गैस पर चाय के लिए पानी
गर्म करने लगा तभी मैने रसोर्इ में से देखा कि मेरी पड़ोसन मेरी मेज पर एक कटोरी
जोकि एक प्लेट से ढकी हुर्इ थी, रख कर चली गर्इं थीं। चाय बनाकर मैं मेज के पास आया। प्लेट हटाकर देखा तो एक
बड़ी कटोरी में थोड़ी सी जलेबी और छौंके हुए उबले काले चने थे। उसे देखते ही बरबस
मैं मुस्कराने लगा। समझ तो गया यह सोच का परिणाम है। मैने र्इश्वर को धन्यवाद किया
साथ ही शिकायत भी की यदि तूने मेरी इच्छा पूरी करनी ही थी, तो व्यर्थ में मेरे पैसे क्यों खर्चाए।
उधर दूसरी ओर वह मिस्त्री
नाश्ता करने गया तो दोपहर बाद लौटकर आया और कहने लगा कि- साहब! क्या बतांऊ। वहां
दुकान में एक अन्य आदमी मिल गया। वह जबरन अपने साथ ले गया। उसका काम निपटा कर अब
फुर्सत पार्इ है। आपकी जलेबी चना लाया है। मैने मुस्कराते हुए कहा मेरी इच्छा पूरी
हो चुकी है- तुम इसका भी सेवन कर लो। मैने उससे सच बोला था जबकि मुझे पूर्ण
विश्वास है कि वह मिस्त्री यही सोच रहा होगा कि शायद देरी के कारण मैं नाराज हो
गया हूँ, इसलिए नहीं खा रहा।
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