बलरामपुर नगर में मुख्य
मार्ग पर जो चौराहा है, उसे वीर विनय चौक के नाम से जाना जाता है। सन
2000 र्इ0 की बात है। बलरामपुर नया जिला बना था। मैं
उस पर एक किताब 'सार संकलन बलरामपुर लिख रहा था। इस पुस्तक का व्यय भार बलरामपुर चीनी मिल के
तत्कालीन ग्रुप जनरल मैनेजर र्इश्वर दयाल मित्तल द्वारा किया जा रहा था। उसी दौरान
मैने काफी प्रयास करके वीर विनय की संक्षिप्त जीवनी एकत्र की थी। वह एक फौजी था।
छोटी सी आयु में वह भारत पाक युद्ध में शहीद हुआ था। उसकी संक्षिप्त जीवनी चित्र
सहित मैने बलरामपुर वाली किताब में प्रकाशित भी की थी। मैने ही श्री मित्तल जी को
वीर विनय कायस्था की मूर्ति बनवा कर लगवाने हेतु प्रेरित किया। वह उसका व्यय भार
उठाने को तैयार हो गये। मुझे लखनऊ भेज कर उन्होंने उसका अनुमानित व्यय बताने को
कहा। मैने सारी जानकारियाँ एकत्र करने के बाद फार्इल मित्तल साहब को सौंप दी। यह
पहला अवसर था कि जब लोगों ने उस किताब के माध्यम से विनय कायस्थ को चित्र से
पहचाना था। उसी दौरान मित्तल साहब नौकरी छोड़कर अन्यत्र चले गए। वह फाइल और मेरी
सोच, मेरा स्वप्न सब अधूरा रह
गया।
इसके ठीक दस साल बाद मुझे पता चला कि नगर के
एक सभ्रांन्त व्यक्ति जिसे लोग आजाद सिंह अथवा छोटे भैया के नाम से जानते हैं। उन्होने चीनी मिल के
माध्यम से मेरे उस सपने अथवा मेरे उस अधूरे कार्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया। यह
जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुर्इ। वीर विनय की मूर्ति स्थापित करने की परियोजना
हेतु आजाद सिंह की अध्यक्षता में कमेटी का गठन हुआ। पथिक होटल में बैठकों का आयोजन
होता रहता। जिले के गाँव-गाँव से सहयोग प्राप्त करने पर बल दिया जाने लगा।
धीरे-धीरे कार्य रेंगने लगा और एक दिन मूर्ति स्थापित भी हो गर्इ। मूर्ति स्थापना
के प्रारम्भ से लेकर उसकी स्थापना के समय तक]
मेरा जब भी कभी अचानक आजाद सिंह से आमना
सामना होता, वे मेरी बड़ी तारीफ करते, चाय पिलाते] पास बैठाते। यह अलग बात है कि उस परियोजना के प्रारम्भ से अन्त तक उन्होंने
अपनी सोच और अपनी बैठकों से मुझे बहुत दूर रखा। लेकिन सत्यता यह है कि जब भी कभी
उस वीर पुरुष का जिक्र आता है, मेरा सिर आजाद सिंह के लिए नतमस्तक हो जाता है। मैं उन्हें पहले से कहीं अधिक
सम्मान देता हूँ, अपने भीतर उनके प्रति आदर की भावना रखता हूँ, क्योंकि उन्होंने मेरे अधूरे कार्य को पूर्ण
किया है। इस बात की प्रसन्नता का अनुभव शायद मेरे सिवा अन्य किसी को न होता।
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