अन्तस की यात्रा

Dedication : This blog is dedicated tothose great spirits(Sants), who following the tradition of Guru Shishya, deemed me worthy of attention and introduced me to PRAN DHYAN, the method of simplest and highest form of meditation. Where direct and indirect blessings are always with me, by the path shown by the them. With the effect that I guide and sport those who arementally disturbed in some forms and are in search of peace. In life through positive thinking and meditation I have come back to my self. If you like tocome, you’re. Note: I only show you the way, you only have to walk. You will only receive sensations. Come to thy self increase your self power. click here for English version


समर्पण
यह ब्लॉग उन महान आत्माओं (संतों) को समर्पित है जिन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत मुझे इस योग्य समझा और प्राण ध्यान की विधि से मेरा परिचय कराया जोकि ध्यान की सबसे सरलतम एवं उच्चतम विधि है। उन महान संतों को, जिनका परोक्ष / अपरोक्ष आशीर्वाद सदैव मेरे सिर पर रहता है। इस आशय के साथ कि उनके द्वारा दिखाए मार्ग द्वारा मै उन लोगों का सहयोग करूँ जो किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से परेशान हैं। जिन्हें शांति की तलाश है. सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान के माध्यम से मै अपने पास वापस आ गया हूँ। यदि आप भी आना चाहें तो आपका स्वागत है। ध्यान रहे ! मै केवल आपको मार्ग दिखाऊँगा, चलना आप ही को पड़ेगा। अनुभूतियाँ आप ही को प्राप्त होंगी। अपने खुद के पास आइए, अपनी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाईए।
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Monday 26 December 2011

प्रेम की भाषा 1

पशुओं से प्रेम की भाषा का एक अनुभव याद आता हैमै गोरखपुर नगर से दस या बारह कि0 मी0 दूर रामगढ़ के वन विभाग के विश्रामालय मे ठहरा हुआ था। वहाँ के चौकीदार के द्वारा मुझे पता चला कि सुबह दिन निकलते ही जंगल के कुछ हिरण विश्रामालय के अति निकट आ जाते हें। चौकीदार उन्हें रात का बचा खुचा भोजन दे दिया करता था। मैंने चौकीदार से कहा सुबह तुम जब उन के पास जाना तो मुझे भी उनके पास ले जाना। उसने बताया कि साहब! हिरण अपरिचितों के पास नहीं आते। मैंने कहा कि प्रयास करूंगा। मेरा विश्वास है कि वो मेरे पास जरूर आएंगे.  
देर् रात तक मैंने उन अपरिचित हिरणो के बारे मे सकारात्मक सोच बनाई। सुबह तक उनके प्रति मन ही मन प्रेम कि भावना उत्पन्न करता रहा। सुबह सूर्योदय के समय मई चौकीदार के साथ उस स्थान तक गया जहां हिरण आते थे।  कुछ ही पलों मे मुझे हिरणों का झुंड आता दिखाई दिया। वे सभी कुछ फासले पर रुक कर हमारी ओर देखने लगे।
मै मन ही मन तरंगों के माध्यम से उन्हें अपने पास बुलाने का निमंत्रण देता रहा। मेरे आश्चर्य कि सीमा न रही जब मैंने एक हिरण को अपनी ओर आते देखा। मैंने एक हाथ में चने लेकर हाथ उसकी ओर बढ़ाया। वह धीरे धीरे पास आया ओर मेरी हथेली पर रखे चने खाने लगा। उसके बाद एक ओर हिरण आया। मैंने बहुत देर तक उन दोनों हिरणों को चने खिलाये तथा उनके सिर पर हाथ फेर कर उन्हे खूब प्यार किया। चौकीदार ने उस अवसर पर कुछ चित्र भी लिए।
कहने या लिखने कि आवश्यकता नहीं है कि सकारात्मक सोच और  प्रेम की भाषा से उत्पन्न इस संबंध को वयक्त करने के लिए किन शब्दों का प्रयोग करूँ।                  

Friday 23 December 2011

सकारात्मक सोच का परिणाम

हाँ प्रिंसि। मुझे याद है।


मैंने वो फोटो अभी तक रखा हुआ है।


तुम्हारे लिए उस चित्र को पोस्ट कर रहा हूँ।

Friday 16 December 2011

बचना! इन धार्मिक दुकानों से


मै चाहता था कि किसी सामाजिक संस्था से जुड़कर अपने जीवन का शेष समय लोगों कि सेवा में अर्पित करूं.  मुझे सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान  का कुछ ज्ञान व् अनुभूतियाँ प्राप्त थीं. मै चाहता था कि मै किसी ऐसी संस्था से जुड़ूँ जहाँ या तो मै अपने पूर्व अर्जित ज्ञान व् अनुभूतियाँ में वृद्धि कर सकूं अथवा जितना मै जानता हूँ, उसे औरों में बाँट सकूं.

अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मै भारत के विभिन्न छोटे व् बड़े धार्मिक व् सामाजिक संस्थानों तथा संतों  के आश्रमों में  गया तथा  वहां कई कई दिन रह कर वहां के बारे  में जानासमझा.  उनका साहित्य पढ़ अधिकतर मुझे ऐसे लगे जैसे धार्मिक दुकानों के  मालिक। हर कोई अपना साहित्य या  अन्य उत्पाद बेचने की फ़िक्र में व्यस्त.
यहाँ मै  योग की बात को   अलग  रखना चाहूँगा।  कयोंकि मेरा विषय योग नहीं है. मै ध्यान साधना  की सरलतम  एवं उच्चतम अन्य विधियों की तलाश में था. मैंने  सोचा!  कि यदि मै इन धार्मिक दुकानों  में फंस गया तो औरों कि तरह मै भी किसी आश्रम या साधु का चेला मात्र बन कर रह जाऊंगा जो न तो मुझे ईश्वरीय  मार्ग बताएगा और न ही  मुझे मेरे अंतस की यात्रा ही करा सकेगा. हाँ! अंतस की यात्रा हेतु विपश्ना भी एक  बेहतर  मार्ग है.  

मैंने फैसला किया कि मै अपने गुरु द्वारा सिखाई  गयी  ध्यान साधना की उसी विधि का प्रयोग करुँगा जो  उन्होंने सिखाई थी। जिसका नाम उन्होंने प्राण ध्यान बताया था.  

ध्यान की इस विधि से मैंने अंतस की यात्रा का कितना और कैसे आनंद लिया कभी इस पर भी बात होगी. आज मै इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि कोई भी इस विधि के द्वारा अंतस की यात्रा करना चाहेगा तो उसे मै अवश्य मार्ग दिखाने का प्रयास करुँगा,  बशर्ते कि उस प्राणि  में प्रेम, दया और सकारात्मक  सोच की भावना हो.

याद रखिये, प्रेम, दया और भावना की कोई भाषा नहीं होती.
इसे केवल समझा और समझाया जा सकता है.
अर्थात इसकी अनुभूति प्राप्त की जा सकती है।

खालिद साहेब,
आज आपको सोचने के लिए एक सवाल देता हूँ. कल मैंने Discovery चैंनल पर एक दृश्य देखा था.
दृश्य इस प्रकार था- एक नदी के किनारे पर कुछ हिरन पानी पी रहे थे. अचानक एक मगरमच्छ ने हिरन के एक बच्चे को अपने ज़बड़े में जकड़ लिया.बच्चे का सिर मगरमच्छ के मुंह में था. तभी एक गैंडा आयाउसने मगरमच्छ को एक जोरदार ठोकर दी, बच्चा छूट गया परन्तु घायल था. मगरमच्छ भाग गया. गैंडे ने हिरन के बच्चे का घायल सिर अपने मुंह में डाला और फिर छोड़ दिया. ऐसा उसने तीन बार किया. ऐसा लग रहा था कि जैसे गैंडा उस बच्चे को कृत्रिम सांस दे कर उसे जीवनदान दे रहा हो.
प्रेम और दया का इससे बेहतर उदहारण और क्या  हो सकता है.
अब आप बताईये,
वो तीनो अलग अलग प्रजातियों के थे. 
सबकी अपनी अलग भाषा होगी.
 यहाँ किस भाषा का प्रयोग किया गया था.    

Wednesday 14 December 2011

अन्तस की यात्रा

अंतस यानि भीतर. अंतस की यात्रा अर्थात भीतर की यात्रा.


प्राण ध्यान
ध्यान साधना की सरलतम एवं उच्चतम विधि.






प्राण ध्यान के माध्यम से जो मैंने सीखा और पाया 
मेरे न चाहने के बावजूद मेरे शिष्यों ने मुझे विवश कर दिया कि मै अपने अनुभवों को लिखूं.अपने शिष्यों का आग्रह मुझे इस लिए भी मानना पड़ा  
क्योंकि मेरी एक पुस्तक अंतस की यात्रा  को बहुत पसंद किया गया.
प्राण ध्यान सांसों कि प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा मनुष्य पहले अपने भीतर की यात्रा करता है 
और फिर अन्य जगत की.
ये विधि आज की नहीं, बल्कि हजारों साल पुरानी है.
मैंने यह विधि कैसे और किससे सीखी यह मै अपनी पुस्तक मै तो लिख चुका हूँ.
जैसे जैसे समय मिलेगा मै इस ब्लॉग द्वारा भी लोगों को बताने का प्रयास करुँगा.
आज बस इतना ही