बलरामपुर में सत्यम स्टूडियो
के नाम से एक दूकान है। जहाँ शादी विवाह आदि की वीडियो फिल्म की
मिकिसंग का काम होता था। चार पाँच कम्प्यूटर पर चार पाँच लड़के काम किया करते थे।
उनमें एक लड़की भी थी। काफी बाद में पता चला कि उसका नाम रुचि पाण्डेय था। स्टूडियो का मालिक शिवनाथ
मेरा परिचित था। एक बार मैं उसके स्टूडियो में बैठा था। सभी अपने अपने अपने काम
में व्यस्त थे। मै और शिवनाथ चाय पीते हुए बातें भी कर रहे थे। उस लड़की की पीठ
मेरी ओर थी अत: मैं उसका चेहरा नहीं देख सकता था। हाँ उसके द्वारा किया जा रहा काम, जो कि कासिटंग में दिए जाने वाले नाम थे, उसे टाइप कर रही थी और वह मुझे मानीटर पर
स्पष्ट दिख रहे थे। अचानक वह उठी बाहर गर्इ और दो तीन मिनट बाद लौट कर पुन: अपने
कार्य में व्यस्त हो गर्इ। तब मैने उसका चेहरा देखा था। वह बाइस से चौबीस वर्षीय
खूबसूरत गौरवर्णीय युवती थी। उसको देखने के बाद सहसा मेरे दिमाग में एक प्रश्न
उत्पन्न हो गया। मै सोच रहा था कि यह लड़की यदि यहाँ कम्प्यूटर सीख रही है तो अपना
समय बर्बाद कर रही है। क्योंकि जो वह सीख रही वह उसे कभी नहीं सीख सकेगी। उसका
मानसिक स्तर उसके द्वारा टाइप किए जाने वाले काम से अनुमानित किया जा सकता है। फिर
यदि वह सीख भी गर्इ तो उसके किसी काम का नहीं। क्योंकि बलरामपुर में वीडियो
मिकिसंग का कोर्इ भविष्य नहीं है। कहीं बाहर जाकर काम करना भी इसके वश के बाहर
होगा क्योंकि इस क्षेत्र के लोग लड़कियों को नौकरी तो क्या उच्च शिक्षा हेतु भी बाहर भेजना पसन्द नहीं करते। कुछ ही
पलों में अपनी इस सोच से बाहर आ गया कि मैंने इससे क्या लेना देना है। इसे समझाने
का या कुछ कहना न तो मेरे अधिकार क्षेत्र में है,
और न उचित ही है। हा,ँ कभी मुझसे राय ली तो समझा दूंगा। कुछ देर
बाद मैं घर चला आया। इसके पाँच छ: दिन बाद एक दिन दरवाजे पर आहट हुर्इ। दरवाजा
खोलते ही आगन्तुक को देख कर मैं आश्चर्य चकित रह गया। मेरे सामने वही कम्प्यूटर
वाली लड़की खड़ी थी। उस युवती को बैठा कर मैने पड़ोसी की लड़की प्रिन्सी को आवाज
दी जो कभी कभी मेरी चाय बना दिया करती थी। प्रिन्सी ने उसके लिए चाय पानी का
प्रबन्ध किया।
उसी समय लखनऊ से मेरे मित्र
राजा डी0 पी0 सिंह आ गए। उस युवती का परिचय कराते हुए मैने उनसे इतना ही कहा इनसे मेरी
प्रथम भेंट है, और मैं इनका नाम भी नहीं जानता और इनके यहाँ आने का प्रयोजन से भी मैं अनभिज्ञ
हूँ। अच्छा यही है कि हमारी वार्तालाप में आप भी शरीक हो जांए ताकि आपको बोरियत न
हो। उस युवती ने राजा साहब को अपना नाम बताया तो मुझे उसका नाम पता चला। उसने राजा
साहब को जो कुछ बताया उसका सारांश यह था कि उसने मुझे पहली बार उस स्टूडियो में
देखा था। मेरी और शिवनाथ की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी। रात को जब वह सोने
चली तो उसे मेरा ध्यान आया और उसी के साथ एक सोच उभर कर आती कि यही मुझे सही दिशा
प्रदान करेंगे। यह सिलसिला उस दिन से लगातार चल रहा था कि मैं बख्शी सर का पता
पूछते-पूछते आज यहाँ तक पहुंच गर्इ हूँ। मैंने राजा साहब को समय देना था इसलिए
मैने उसे अगले दिन आने को कहा और उसे विदा करना चाहा। जब वह जाने लगी तो राजा साहब
ने उसे रोककर कहा- जहां तक मेरा मानना है तुम सही जगह आर्इ हो। तुम्हें सही सलाह
मिलेगी। मैं इन्सानों के भीतर छिपी प्रतिभा को परखने में कभी चूक नहीं करता। यहाँ, इनके आया हूँ,
तो कुछ सोच कर। कल से तुम एक नर्इ जिन्दगी
शुरू करोगी।
रुचि चली गर्इ। अगले दिन वह
आर्इ तो उसने वही सब बताया जो उस दिन स्टूडियो मैं बैठा सोच रहा था। वह बी0ए0 पास थी। आगे की पढ़ार्इ बन्द थी। माँ बाप कहीं बाहर भेजने को तैयार न थे।
उनसे विद्रोह करके मैंने कम्प्यूटर सीखना चाहा। यहां जो सिखाया जा रहा है वह मेरी
समझ में नहीं आता। मैने उसे समझाया कि अगर कम्प्यूटर सीखना चाहो तो बलरामपुर में
ये-ये लोग विधिवत सिखाते हैं। जाकर उचित कोर्स करो। अच्छा यही है कि एम0ए0 और बी0एड0 की पढ़ार्इ करो और शिक्षक बन जाओ,
जो तुम्हारे लिए सरल और उचित भी है। यह मेरा
फोन नम्बर है जब भी जरूरत पड़े सलाह ले लेना। जब तक मेरा बलरामपुर प्रवास रहा वह
यदा कदा आती रही। उसे मैने प्राण ध्यान सिखाने हेतु शिष्य भी बनाया। बाद में फोन
द्वारा वह मुझसे दिशा निर्देश लेती रही। अभी तक कुछ दिन पहले उसके फोन द्वारा पता
चला कि उसने एम0ए0 कर लिया है और बलरामपुर के किसी स्कूल में शिक्षिका के पद पर कार्यरत है। इन
दिनों भी कभी-कभी मेरे मोबाइल सेट में उसकी मिस काल दिखार्इ दे जाती है। लेकिन मै
उसका फोन अब उठाता नहीं, इधर से कभी मिलाता नहीं। जानता हूँ,
उसका पहला वाक्य यही सुनार्इ देगा-सर आप
बलरामपुर कब आंएगे। दूसरा यह भी कि वह अपनी मंजिल पा चुकी है। वह अपने बनाए शब्दों
द्वारा कृतज्ञता अर्पित करना चाहती है,
जिसका मेरे लिए कोर्इ मूल्य नहीं है।
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