अन्तस की यात्रा

Dedication : This blog is dedicated tothose great spirits(Sants), who following the tradition of Guru Shishya, deemed me worthy of attention and introduced me to PRAN DHYAN, the method of simplest and highest form of meditation. Where direct and indirect blessings are always with me, by the path shown by the them. With the effect that I guide and sport those who arementally disturbed in some forms and are in search of peace. In life through positive thinking and meditation I have come back to my self. If you like tocome, you’re. Note: I only show you the way, you only have to walk. You will only receive sensations. Come to thy self increase your self power. click here for English version


समर्पण
यह ब्लॉग उन महान आत्माओं (संतों) को समर्पित है जिन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत मुझे इस योग्य समझा और प्राण ध्यान की विधि से मेरा परिचय कराया जोकि ध्यान की सबसे सरलतम एवं उच्चतम विधि है। उन महान संतों को, जिनका परोक्ष / अपरोक्ष आशीर्वाद सदैव मेरे सिर पर रहता है। इस आशय के साथ कि उनके द्वारा दिखाए मार्ग द्वारा मै उन लोगों का सहयोग करूँ जो किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से परेशान हैं। जिन्हें शांति की तलाश है. सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान के माध्यम से मै अपने पास वापस आ गया हूँ। यदि आप भी आना चाहें तो आपका स्वागत है। ध्यान रहे ! मै केवल आपको मार्ग दिखाऊँगा, चलना आप ही को पड़ेगा। अनुभूतियाँ आप ही को प्राप्त होंगी। अपने खुद के पास आइए, अपनी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाईए।
हिमाचल गिरिपार के हाटी आदिवासियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
For more details about Hatti Tribes of Giripar Himachal Pradesh click here

More about Pawan Bakhshi click here





जीवन को सरल-सहज बना देने वाले दोहे और पद

वालहु निक्की पुरसलात कन्नी न सुनी जाए।
फरीदा किड़ि पव्न्दीई खड़ा न आप मुहाए॥
अर्थात तुमने कभी पुल सिरात का नाम नहीं सुना, जो बाल से भी बारीक है। (कहते हें आत्मा को यम इसी पुल से पार करा कर ले जाएंगे।) तुम्हें संभालने के लिए महापुरुष, संत, पैगम्बर आवाज़ें दे रहे हैं, तुम उनकी आवाज़ों को ध्यान से सुनो और अपने आप को न लुटाओ अर्थात अपना जीवन व्यर्थ न गँवाओ।
किछु न बुझै किछु न सुझै दुनिया गुझी भाहि।
साईं मेरे चंगा कीता नहीं त हंभी द्यां आहि॥

दुनिया का मोह एक छुपी हुई आग है जिसमे मै पड़ा हूँ। मुझे कुछ भी सूझ बूझ नहीं रहा कि मै क्या करूँ। मेरे मालिक (ईश्वर) ने मुझ पर कृपा जो मुझे इस आग से उसने बचा लिया है। नहीं तो मै भी (दुनिया के अन्य लोगों कि तरह इस में पड़कर) सड़ जाता।

फरीदा जो तै मारे मुक्किया तिन्ना न मारे घुम्म।
आपनड़े घर जाइए पैर तिनह दे चुम्म॥
फरीद कहते हैं जो तुम्हें मुक्के मारें अर्थात दुख दें तुम पलट कर उन्हें दुख न दो (यानि बदले कि भावना न रखो) तुम दुख देने वाले लोगों के पाओं चूम कर अपने निज स्वरूप मे तिक जाओ (ऐसा करने से तुम्हारा मन शांत रहेगा)।

फरीदा जिन लोइन जग मोहिया सो लोइन मे डिठु।
कजल रेख न सहदिया से पंखी सूई बहिठु॥

फरीद कहते हैं जिन खूबसूरत आँखों ने संसार के जीवों को मोह रखा था, मैंने वो आँखें भी देखी हैं। किसी समय ये आँखें काजल कि धार भी सहन नहीं कर पाती थीं, आज यह पक्षियों के बच्चों का घोंसला बनी हुई हैं। अर्थात शारीरिक सुंदरता सदा एक सी नहीं रहती इसका अभिमान करना व्यर्थ है।    

पूजे पाहन पानी
दादू दुनिया दीवानी, पूजे पाहन पानी।
गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।
चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।
छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।
धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।
ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।
बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।
रूप रंग से न्यारा

दादू देखा मैं प्यारा, अगम जो पंथ निहारा।

अष्ट कँवल दल सुरत सबद में, रूप रंग से न्यारा।
पिण्ड ब्रह्माण्ड और वेद कितेवे, पाँच तत्त के पारा।

सत्त लोक जहँ पुरु बिदेही वह साहिब करतारा।
आदि जोत और काल निरंजन, इनका कहाँ न पसारा।

राम रहीम रब्ब नहीं आतम, मोहम्मद नहीं औतारा।
सब संतन के चरन सीस धर चीन्हा सार असारा।


मीरा के पद

दरद न जाण्यां कोय

हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।

जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।

मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥

अब तो हरि नाम लौ लागी

सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी।
कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।

मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी।
मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव।

स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव।
पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।

दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥

राम रतन धन पायो

पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो।

बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो।
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।

खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो।

सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥

हरि बिन कछू न सुहावै

परम सनेही राम की नीति ओलूंरी आवै।

राम म्हारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै।
आवण कह गए अजहुं न आये, जिवडा अति उकलावै।

तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै।
चरण कंवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै।

मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्यौ, आंणद बरण्यूं न जावै॥

झूठी जगमग जोति

आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।

झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।

झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।
छप्प भोग बुहाई दे है, इन भोगिन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है, अपणो पियाजी को साग।

देखि बिराणै निवांण कूं हे, क्यूं उपजावै खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज।

छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।

वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।

अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥

अब तो मेरा राम

अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।

साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।

प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।

संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।

राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥

अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥

म्हारे तो गिरधर गोपाल
म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई।

तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥

संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई।

मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जू सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।

अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥