अन्तस की यात्रा

Dedication : This blog is dedicated tothose great spirits(Sants), who following the tradition of Guru Shishya, deemed me worthy of attention and introduced me to PRAN DHYAN, the method of simplest and highest form of meditation. Where direct and indirect blessings are always with me, by the path shown by the them. With the effect that I guide and sport those who arementally disturbed in some forms and are in search of peace. In life through positive thinking and meditation I have come back to my self. If you like tocome, you’re. Note: I only show you the way, you only have to walk. You will only receive sensations. Come to thy self increase your self power. click here for English version


समर्पण
यह ब्लॉग उन महान आत्माओं (संतों) को समर्पित है जिन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत मुझे इस योग्य समझा और प्राण ध्यान की विधि से मेरा परिचय कराया जोकि ध्यान की सबसे सरलतम एवं उच्चतम विधि है। उन महान संतों को, जिनका परोक्ष / अपरोक्ष आशीर्वाद सदैव मेरे सिर पर रहता है। इस आशय के साथ कि उनके द्वारा दिखाए मार्ग द्वारा मै उन लोगों का सहयोग करूँ जो किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से परेशान हैं। जिन्हें शांति की तलाश है. सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान के माध्यम से मै अपने पास वापस आ गया हूँ। यदि आप भी आना चाहें तो आपका स्वागत है। ध्यान रहे ! मै केवल आपको मार्ग दिखाऊँगा, चलना आप ही को पड़ेगा। अनुभूतियाँ आप ही को प्राप्त होंगी। अपने खुद के पास आइए, अपनी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाईए।
हिमाचल गिरिपार के हाटी आदिवासियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
For more details about Hatti Tribes of Giripar Himachal Pradesh click here

More about Pawan Bakhshi click here





Wednesday 11 January 2012

क्या बचपन इसी को कहते है ?




एक बार मै अपने टूर पर था। मै बलरामपुर से झालीधाम की ओर जा रहा था। रास्ते में एक छोटा सा कस्बा पड़ता है जिसका नाम ईंटियाठोक है। मेरे साथ रामू दादा भी थे। पत्ते भैया कार चला रहे थे। रास्ते मै एक स्थान पर सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था। अचानक मेरी दृष्टि दो मासूम बच्चों पर पड़ी। उन्हें देख कर मेरा मन धक्क से रह गया। मैंने तुरंत कार रुकवाई। उन बच्चों का चित्र लिया। मेरा मन धक्क से क्यों रह गया ? इस चित्र को देखकर आप स्वएं सहज ही अनुमान लगा सकते हें। मै रास्ते भर यही सोचता रहा कि क्या बचपन इसी को कहते है ?
.

1 comment:

  1. Pawan Ji - ati marmik aur sajeev ! Ab kya kuch aur kahne ko rah gaya hai ! Ye haal hai bachpan ka aur hamara haal to aapko pata hi hai

    ReplyDelete