अन्तस की यात्रा

Dedication : This blog is dedicated tothose great spirits(Sants), who following the tradition of Guru Shishya, deemed me worthy of attention and introduced me to PRAN DHYAN, the method of simplest and highest form of meditation. Where direct and indirect blessings are always with me, by the path shown by the them. With the effect that I guide and sport those who arementally disturbed in some forms and are in search of peace. In life through positive thinking and meditation I have come back to my self. If you like tocome, you’re. Note: I only show you the way, you only have to walk. You will only receive sensations. Come to thy self increase your self power. click here for English version


समर्पण
यह ब्लॉग उन महान आत्माओं (संतों) को समर्पित है जिन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत मुझे इस योग्य समझा और प्राण ध्यान की विधि से मेरा परिचय कराया जोकि ध्यान की सबसे सरलतम एवं उच्चतम विधि है। उन महान संतों को, जिनका परोक्ष / अपरोक्ष आशीर्वाद सदैव मेरे सिर पर रहता है। इस आशय के साथ कि उनके द्वारा दिखाए मार्ग द्वारा मै उन लोगों का सहयोग करूँ जो किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से परेशान हैं। जिन्हें शांति की तलाश है. सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान के माध्यम से मै अपने पास वापस आ गया हूँ। यदि आप भी आना चाहें तो आपका स्वागत है। ध्यान रहे ! मै केवल आपको मार्ग दिखाऊँगा, चलना आप ही को पड़ेगा। अनुभूतियाँ आप ही को प्राप्त होंगी। अपने खुद के पास आइए, अपनी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाईए।
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Wednesday 8 February 2012

अपने को पहचानिए


अपने को पहचानिए

संसार के मनुष्यों को मोटे-मोटे तौर पर पाँच वर्गो में विभाजित किया जा सकता है - पहला वर्ग उन मनुष्यों का है जो अपने सुख-दुख में हँसते-रोते-गाते, कोसते, लड़ते, झगड़ते अपना जीवन बिता रहे है। उन्हे मैथुन, भोजन, वस्त्र से अधिक की न ही इच्छा है और न ही अपने जीवन-वृत से बाहर आने का कोर्इ चाव। दूसरे प्रकार की श्रेणी पहले प्रकार से कुछ अधिक उन्नत हैं, साफ-सुथरी, शिक्षित या अर्धशिक्षित हैंवे अपने दु:खों के प्रति जागरूक नहीं हैं परन्तु उसकी पीड़ा से कातर होकर पीड़ा के मूल कारणों से अनभिज्ञ किसी र्इश्वर, देवी देवता के चरणों में माथा रगड़ते, कान पकड़ते या तंत्र-मंत्र-यंत्र की विधाओं मे पुजारी पंडितों के जाल में फँसे अपने दु:खों से मुक्त होने का उपाय ढूँढ रहे हैं। अपने कष्टों के लिए र्इश्वर को अथवा अन्य किसी को दोषी मानते हैं। तीसरे वर्ग में वे लोग हैं जो विद्वान हैं। धर्मशास्त्रों का जिन्हें अच्छा ज्ञान है। बात - बात में शास्त्रार्थ पर उतरने को अधीर हो जाते है। उपरोक्त दोनों वर्गो की भाँति ये भी दु:ख से विहल है। मन के स्वभाव पर बहस करते हैं पर मन  इनके वश में नहीं। ध्यान पर चर्चा करते हैं पर ध्यान के एक पल का भी अनुभव नहीं। संस्कार उनसे वह सब कुछ करवा लेता है, जिसे वे जानते हैं कि वह पाप है या अकरणीय कर्म है। ऊपर से आदर्शवादी दिखते हैं परन्तु संवेदनशीलता विहीन हैं। यह श्रुत ज्ञानियों का वर्ग है। चौथी श्रेणी के लोग उपरोक्त तीनों से अधिक उन्नत हैं। जीवन में कलात्मक हैं] सृजनात्मक है और संवेदनशीलता इनका प्रमुख गुण है। इन्होने दु:ख के मूल स्वरूप और स्रोत को जान लिया है। इसलिए ये संस्कार बीज को ही नष्ट करने में लगे हुए है। यह श्रेणी ध्यानियों की, चिन्तन, मनन करने वाली आत्म विश्लेष्कों की श्रेणी है। ये प्रतिपल या तो सजग हैं या फिर सजगता के अभ्यास में रत हैं। अपने व्यवहार के प्रति, अपने विचार के प्रति इन्होने श्रुत ज्ञान को अपने जीवन में उतार लिया है। ऐसे ज्ञान को बुद्ध भावित प्रज्ञा कहते है। पाँचवीं श्रेणी उन विशिष्ट महामानवों और महात्माओं की है जिन्होने जीवन के चक्र से स्वयं को मुक्त कर लिया है और मानव के उत्थान के प्रतिसतत जागरूक और प्रतिबद्ध है। ये उच्चकोटि के महानयक, हमारे संरक्षक और मार्गदर्शक है। पाँचवीं श्रेणी के महानायक भी उसी रास्ते से चलकर वहाँ पहुँचे जहाँ आज हम खड़े हैं। हमें भी इन्ही रास्तों से चलकर वहां पहुंचना है जहां आज वे खड़े हैं। उन्होंने मन की उन्ही बाधाओं को पार किया है, जो आज हमारे मार्ग में अडिग शिला बनकर खड़ी है। रास्ता पार करना कठिन तो है परन्तु असम्भव नहीं। मन की अकथ कथा कड़ी कहत कबीर समुझाय जो कोर्इ मन को समझ ले वाको काल न खाय। तो आइये सदियों से बन्द मन के द्वार को खोलें और भीतर प्रवेश करें और देखें कि पूर्व जन्मों से आज तक क्या क्या अनुभव या संस्कार वहाँ हमने जमा कर रखे हैं। मन के द्वार को खोलना, भीतर जाना, संग्रहीत वस्तुओं का निरीक्षण करना, उपयोगी-अनुपयोगी, सत-असत, कुशल-अकुशल, आवश्यक-अनावश्यक की छटनी करना, अनुपयोगी को स्टोर से बाहर निकाल कर फेंक देना- यही ध्यान है।